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आत्मनिर्भरता – रक्षा क्षेत्र

इस वर्ष अगस्त माह में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने रक्षा आयात क्षेत्र मैं आत्मनिर्भर का अहम फैसला सुनाया उन्होने 101 रक्षा संबन्धित अस्त्र शस्त्र , जंगी जहाज़ , और अन्य रक्षा संबन्धित वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया । यह प्रतिबंध दिसम्बर 2020 के बाद लागू होगा । इस नीति का मैं स्वागत करता हूँ और उम्मीद करता हूँ की यह सफल होगी । आगे चल कर इन सब वस्तुओं का निर्माण देश मैं ही होगा , वैसे भी कई वस्तुओं का निर्माण आज भी हो रहा है ।

हम सब जानते हैं की रक्षा संबधित अस्त्र – शस्त्र पर बहुत पैसा लगता है जब हम इसका आयात करते हैं । सभी मुल्क मन माने पैसे लेते हैं रक्षा शस्त्र के और भारी आर्थिक लाभ उठाते हैं । पर मुख्य प्रश्न यह उठता है की क्या हम सक्षम हैं इस कार्य के लिए ? कभी अगर ऐसी स्तिथी उत्पन्न हुई कि हमें इस रक्षा अस्त्र-शस्त्र –सामग्री की आवश्यकता पड़ी तो क्या हम इसका निर्माण कर पाएंगे ? क्या हमारा सरकारी और निजी रक्षा उद्योग इस ज़िम्मेदारी के लिए सक्षम है ? अब तक का रेकॉर्ड इस क्षेत्र में बहुत निराश जनक रहा है । आज़ादी के 73 साल बाद भी हम अपनी आर्मी , नेवी , एयर फोर्स को जरूरी सामान और हथियार देश के उदद्योग द्वारा नहीं दे रहे । मिसाल के तौर पर – थल/वायु सेना के लिए एक अच्छी राइफल , फील्ड तौप , एक अच्छा टैंक , एक लड़ाकू विमान । यह टिप्पणी कुछ दिन पूर्व एक लेख जो ‘सनडे गार्डियन’ में छपा ,विंग कमांडर बक्शी ने की।

यह बात सोचने की है की है कि 1962 के चीन युद्ध के समय हमारे पास 303 राइफल थी जिसकी मैगज़ीन में सिर्फ पाँच गोलियां होतीं हैं , यही राइफल हमारे पास 1965 भारत – पाक युद्ध मैं भी थी । यह जवान का व्यक्तिगत हथियार था । जब मुक़ाबला दुश्मन की मशीन गनों से हो रहा हो तो यह कारगर सिद्ध नहीं हो सकती । 80 के दशक में हमने स्वीडन से बोफोर्स का आयात किया पर पिछले 30 से अधिक सालों में एक अच्छी फील्ड गन नहीं बना पाये । हमें यह भी तजुरबा है की रक्षा संबन्धित सामान जल्दी नहीं बनता , इसमें कई वर्ष लग जाते हैं इसलिए इस नीति का असर जल्दी दीखने के आसार कम हैं । कई बार आश्चर्य होता है की आज़ादी के 73 सालों में हमने विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में बहुत प्रगति की, मिसाइल , सैटिलाइट जैसे यंत्रों और उपकरणों का निर्माण किया पर सबसे अहम चीज़ें को नज़र अंदाज़ कर दिया। छोटे छोटे विकसित देश रक्षा संबन्धित वस्तुएं बनाकर खूब पैसा कमाते हैं , जैसे की इज़राइल और दक्षिण अफ्रीका ।

अमरीका की आर्थिक व्यवस्था में अहम योगदान उसका रक्षा संबन्धित साजो सामान , लड़ाकू विमान , मिसाइल इत्यादि का है । योरोपीय देशों ने कम से कम एक या दो ऐसे खास युद्ध संबन्धित निर्माण किए हैं जिसकी मांग बराबर कई देशों से रहती है , चाहे वह अरब मुल्क के देश हों चाहे पाकिस्तान व अफ्रीका देश । पूर्व सोवियत यूनियन और आज के रूस ने ऐसी ऐसी युद्ध सामाग्री और शस्त्र निर्माण किए जिसकी तारीफ और मांग बराबर रहती है जैसे – कलिश्नकोव राइफल , मिग विमान , काशीन क्लास जंगी जहाज़ , और कई सबमरिन । इन रक्षा संबन्धित सामानों तकनीकी कुशलता की तो सब तारीफ करते हैं पर जिस खूबसूरती से इन्हें बनाया है देख सब चकित रहते हैं ।

चीन ने पिछले तीन दशकों में रक्षा के क्षेत्र में जो तरक्की की है वह हमारे सामने है । वह नया मुल्क हमारी आज़ादी के दो साल बाद बना था और अब वह भरी मात्र में रक्षा संबंधी साजो सामान बना रहा है और उसका निर्यात हमारे पड़ोसी मुल्कों के अलावा और कई और मुल्कों को कर रहा है । जब हमें अच्छी तरह मालूम है की इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा पैसे खर्च होते हैं सभी मुल्क मुंह मांगे दाम मांगते हैं तो अब तक इन 73 सालों में हमने अपनी आवश्यक वस्तुएँ का उदद्योग कर आत्मनिर्भर होना चाहिएथा , पर ऐसा हुआ नहीं । यह कहना उचित न होगा की हम सक्षम नहीं . जब हम नयी नयी मिज़ाइल बना लेते हैं , सेटलाइट का निर्माण कर लेते हैं । मंगलयन और चंद्रयान जैसे प्रयास सफल और साकार कर सकते हैं तो हम इन मुख्य शास्त्रों का निर्माण क्यों नहीं कर सकते ?

हमें आत्मनिर्भर इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि शुरू से रक्षा सौदे के मामले में भष्टाचार के आरोप लगते आए हैं । सबसे पहले आज़ादी के तुरंत बाद कृष्ण मेनॉन जो की भारतीय हाइ कमिश्नर थे ब्रिटेन में ; उनके उपर जीप ख़रीदारी को लेकर आरोप लगे जो कई वर्षों तक उनका पीछा करते रहे और पंडित नेहरू को भी शर्मिंदा किया । जेगुआर विमान को लेकर उस सामी के रक्षा मंत्री श्री जगजीवन राम पर पत्रों में आरोप लगे । बोफोर्स तोप सौदे ने तो राजीव गांधी को चुनाव हरवादिया । एच डी डब्लू पनडुब्बी को लेकर आरोपों का दौर चला , इज़राइल से खरीदी बराक मिसाइल चर्चा में रही । और हाल चुनाव में राफेल विमान छाया रहा । सूप्रीम कोर्ट तक मामला गया । ज़हीर है की जब इतने महंगे सौदे होंगे तो बिचोलिए भी शामिल होंगे और कई पक्षों का स्वार्थ उभरेगा । अगर ऐसी घटनाएँ किसी परिवार में होती तो वह कसम खाता कि फिर कभी बाहर से रक्षा का सामान नहीं खरीदेगा ,पर देश रूपी परिवार पर लगता है की कुछ असर नहीं पड़ता , यह कैसा देश प्रेम है ? फिर स्वाभाविक बात सामने आती है की हमें आत्मनिर्भर कम से कम अपनी आवश्यक सामान के लिए होना चाहिए और उनका निर्माण भारत में होना चाहिए ।


इस क्षेत्र में नौसेना ने प्रगीति की है , वह जंगी जहाज़ और पनडुब्बी देश में बना रहा है पर समय पर जब प्रोजेक्ट्स समाप्त नहीं होते तो नौसेना की ताकत पर असर पड़ता है और फिर आयात करना पड़ता है । साथ में हमें यह भी सोचना चाहिए की क्या इन जहाजों में लगा सामान भारत में बना या विदेश से आयात किया , आयात का प्रतिशत कितना था ? और वह सामान क्या था ? हम देखेंगे की ज़रूरी और बड़ा सामान अभी भी आयात होता है । इसलिए हम रक्षा मंत्री के इस फैसले का स्वागत करते हैं , पर इस कार्य में सभी को लगना पड़ेगा – वैज्ञानिकों , उद्योगपति , राजनेता , स्किल इंडिया और सबसे अहम ; इच्छा शक्ति !

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