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आत्मनिर्भरता और स्वदेसीकरण पर बिंदुगत विचार

राष्ट्रीय सट्रेटेजिक वातावरण के अनुसार सुरक्षा नीति के अनुसार उचित तैयारी तथा स्वदेशी या विदेशों से रक्षा साजो-सामान की आपूर्ति और लम्बी अवधि में स्वदेशीकरण हेतु उचित रोडमेप बनाना।

सुरक्षा में आत्मनिर्भरता जरूरी ही नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय प्रगति और जनता की खुशहाली हेतु अति आवश्यक भी है। विगत कई सालों में इस दिशा में उचित वातावरण तथा बिंदुगत ध्यान की कमी की वजह धीमी प्रगति हुई है। लेकिन फिर भी हम सही दिशा में आगे बड़े हैं।

स्वदेशीकरण या आत्मनिर्भरता हेतु देश में मजबूत एकेडेमिक, तकनीकि, इंजिनियरिंग नोलेजबेस, तकनीकी को धरातल पर उतारना तथा उचित इंफ्रास्ट्र्क्चरों की नितांत आवश्यकता होती है। खुशी की बात है कि, इस दिशा में हमारे एकेडेमिक एवम्‌ तकनीकी संस्थानों, सुरक्षा अनुसंधान & विकास संगठन, शस्त्र सेनाओं और सरकारी/ प्राइवेट इन्डस्ट्री ने काफी उन्नति की है और आगे भी प्रयास जारी हैं। साथ ही इन सभी संस्थानों का शस्त्र सेनाओं से उचित समन्वय भी सराहनीय है।

भारतीय नौ-सैना ने इस दिशा में संतोषजनक प्रगति की है, परिणामस्वरूप नो-सैना ने फ्लोट, मूव और फाइट केटेगरियों में क्रमश: 90%, 60% और 30% आत्मनिर्भर होने में सफलता प्राप्त की है और आगे भी नौ-सैना के सम्बंधित विभागों द्वारा प्रयास जारी है। भारतीय नो-सैना ने अपने तकनीकी तथा धरातलीय अनुभवों के आधार पर देश के सभी रक्षा संस्थानों से उचित समन्वय द्वारा कन्वेंस्नल, स्ट्रेटेजिक तथा अन्य रक्षा सामानों में आत्मनिर्भरता के साथ-साथ अपने आंतरिक विकाश विभागों की भी स्थापना भी की है। ताकि नो-सैना और उसके पार्टनरों के बीच उचित तालमेल रहे।

आज आत्मनिर्भरता में देश ने काफी तरक्की की है। जिनमे युद्‌धपोत, लडाकू विमान, हेलीकोप्टर, टैंक, मिसाएलें, टोरपीडो, माइन्स, राकेट, अमुनिसन, गन, रोकेट लान्चर तथा कई कोन्वेंन्सनल एवम स्ट्रेटेजिक सिस्टम, आदि मुख्य हैं। लेकिन ये पहला चरण है और इनमें निरंतर डिजाइन सुधार एक सामान्य प्रक्रिया रहेगी। साथ ही सभी स्टेक-होल्डरों के बीच एक सही तालमेल से आत्मनिर्भरता को तेज गति मिलने के साथ-साथ रोजगार की भी संभावनाएं भी हैं।

सेनाओं की आवश्यकतानुसारं, निकट और दूरगामी योजनाएं होती हैं और ही स्वदेशी विकास तथा उत्पादन के साथ विदेशों से आयात की भी नीति बनाई जाती है। ये सब स्वदेशी नोलेजबेस तथा उत्पादन क्षमता पर निर्भर करता है। कमियों को दूर करने हेतु सरकारी और निजी क्षेत्रों को विकसित किया जाता है ताकि भविष्य में आत्मनिर्भरता हो जाए और आयुधों की कीमत में भारी कमी आयेगी।

अंन्तत: स्वदेशीकरण ही आत्मनिर्भरता तेज गति से बल देना होगा। इसके लिए सरकारी और निजी संस्थानों को उचित दिशा निर्देश, सशक्तीकरण, संसाधनों का उचित प्रयोग, रखरखाव, गुणवत्ता, आपसी तालमेल, पैसे का सदुपयोग, आदि बातों पर ध्यान देना होगा तथा इसके लिये एक मोनीटरिंग कमेटी की भी आवश्यकता होगी, जो इन पहलुओं पर नजर रखेगी और उचित दिशा निर्देश भी देगी।

– रियर एड्मिरल ओम प्रकाश सिंह राणा, एवीएसम, वीएस्एम (से.नि.)

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