साहित्य

“गोधूलि” – (सावित्री काला की कविता)

गो धूलि का यह मनभावन प्रांगण ।
धुलिया परिवार का सूंदर आँगन ।
सूर्य व चन्द्रमा का यहाँ है संगम ।
रहें सदा शुभ मंगलम शुभंगलम।।
भैरव जी का है यहाँ आशीर्वाद ।
केशव जी का है यह प्रसाद ।
सुमित्रा जी का है सहयोग ।
करेंगे इसका सब उपयोग ।।
शोरिन शारंग शशांक जैसे नौनिहाल ।
भवदत्त तन्वी व जानसि संग डोल रहे सब बाल ।
हिमांशु सुधांशु व तिग्मांशु का यह आवास ।
महकती रहे यह वाटिका यही हमारा आशीर्वाद ।।
वैशाली को दे रहीं नानी जी भी दिल से आशीष ।
माता श्री उषा जी की भी यही रही सदा से सीख ।
करना सदा बड़ों का जीवन में आदर सम्मान ।
तभी पाओगी जीवन में सबका उचित आयाम ।।
जौली वैशाली व तूलिका ने सजाये बंदनवार ।
खुशियों से भर गया गोधूलि का आगार ।
यही तो है स्वर्णिम जीवन का आधार ।
सदा सुखी व संपन्न रहे यह परिवार ।।
तीनो भाइयों का देख स्नेह पूर्ण व्यव्हार ।
सुमित्रा जी की ख़ुशी का नहीं है पारावार ।
हम सब बंधू जनों का यही है आशीर्वाद ।
सदा फुले फले यह धुलिया परिवार ।।
माता सुमित्रा के ये श्रवण कुमार ।
सब प्रसन्न हैं देख इनका व्यव्हार ।
बहुवैं भी देती सदा सर्वदा आदर मान ।
गो धूलि में कर रहें है सबका सम्मान ।।
तीनो भाई हैं अपने अपने क्षेत्र में दक्ष ।
पूछ ले कोई भी प्रश्नं कभी भी यक्ष ।
न्याय मूर्ति केशव धुलिया जी के ये सुपुत्र ।
फैलरही है इनकी कीर्ति यत्र तत्र सर्वत्र ।।
वैशाली की बहन व भाई लाएं हैं उयहार ।
पिता दे रहे स्वर्ग से अपना आशीर्वाद ।
माता कह रहीं देख बेटी का परिवार ।
मेरी गुड़िया ने सजाया अपना संसार ।।
संपादक जी होंगे आज प्रफुल्ल प्रसन्न ।
उनके पोतों ने किया कुल का नाम रोशन ।
न्याय मूर्ति केशव चंद्र जीको याद करके गुणगान ।
बेटो ने दिया पितरों को आदर मान सम्मान ।।
गोधूलि का आज है गृहप्रवेश ।
तीनो भाइयों का होगा समवेश ।
शुभ लग्नं व समय का रखो सदा धयान ।
मूर्धंन्य पंडितों का है यह आदेश ।।
पितरों का है यह पितृ प्रसाद ।
सभी कर रहे हैं उनको याद ।
हम सब परि जनों का है यही आशीर्वाद ।
सुख सौभाग्य सम्पदा से परपूर्ण रहे यह परिवार ।
सावित्री काला” सवि “

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