कैरिल फर्नांडो और लैंसडाउन की कैविट लाइन – ईरा कुकरेती
हाल ही मे मेरी एक मित्र अपनी दो विदेषी महिला मित्रों के साथ हमारी अतिथि बनी। दोनों बुजुर्ग थी लगभग 72-75 वर्श की। वे दोनो रिष्ते में बहने (चचेरी या फुफेरी) थी। दोनो में से एक का जन्म देहरादून के कोरोनेषन अस्पताल में हुआ था। साल, 1947 ब्रिटिष साम्राज्य का सूरज भारत में अस्त हो चुका था नवीन स्वतन्त्र भारत का उदय हुआ और अग्रेंजो को बोरिया बिस्तरा समेट भारत को अलविदा कहना पड़ा। कैरल के माता पिता भी अपनी नन्ही बच्ची जो उस समय 9-10 महीने की रही होगी,के साथ ब्रिटेन लौट गये वही दूसरी स्त्री, रीटा लौरेन के माता पिता भी स्कोटलैण्ड में बसे गये। कैरिल विवाह के बाद ऑस्ट्रेलिया में चली गयी। उम्र के इस पड़ाव मे भी अपनी जन्मस्थली की देखने की कषिष उन्हे हजारों कि0मी0 दूर खींच लाई। वे उन सभी स्थानों चर्च आदि को देखना चाहती थी जिनका जिक्र उन्होने अपने माता पिता से सुना था। लिहाजा हम उनको कोरोनेषन हॉस्पिटल, चर्च आदि स्थानों स्थानों पर ले गये। उनकी यात्रा के कार्यक्रम की सूची में मसूरी के बाद लैंसडोन जाना था। लैंसडाउन ? लेकिन भारत की बड़ी-बडी जगह छोड कर लैंसडाउन ही क्यों ? ये प्रष्न मेरे पति के मन में कौधां। उन्होने पूछा मैम लैंसडाउन में क्या देखना चाहती है ? कैरिल का चेहरा खिल सा गया उन्होने कहा’’ मेरे दादा जी गढवाल रेजीमैन्ट के कर्नल ऑफ द रेजिमैन्ट थे व उन्होने द्वितीय गढवाल राइफल्स खड़ी की थी’’ । मेरे पति की जिज्ञासा उनके इस उत्तर से और बढ गई । जीवन के 2 दषक लैंसडाउन में गुजारे थे ,वहॉ के चप्पे चप्पे से परिचित थे।,फौजी ऑफिसर होने के नाते गढवाल रैजिमेन्टल सैन्टर के इतिहास से काफी हद तक परिचित थ,े उन्होने पूछा,’’ मैम उनका नाम ? ,’’बिग्रेडियर जनरल ईवाट’’ कैरल ने उत्तर दिया ’’ओह आप उनकी ग्रैंड डॉटर है ?’’ उनके नाम पर तो वहाँ इवॉट गार्डन,ईवाट लाइन आदि स्थान है ’’मेरे पति की इस सूचना से किरल खुषी से झूम उठी । उनकी उत्सुकता लैंसडॉउन देखने की और बढ गई।
उनका इंतजाम लैंसडाउन सेन्टर के मैस में ब्रिगेडियर माथुर, मेरी मित्र के पति ने पहले की कर दिया था। कैरिल रीटा, प्रीति व बि0 माथुर लैसंडोन तीन दिन तक रहे और वहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता, भारत के सबसे साफ सुन्दर कैन्टोमेन्ट और उससे भी अधिक वहॉ के गढवाली जवानों की सादगी व मिलनसार स्वभाव ेसे अत्यधिक प्रभावित हुऐ। कैरिल वहाँ के सैन्टमेरी चर्च, सिमिट्री, टिफिन टॉप,आदि स्थानों पर घूमने गयी। हिमालय दर्षन करते,एविट लाइन, एविट गार्डन घूमते, वह भूतकाल में, वहाँ अपने प्रियजनो की कल्पना से भावुक हो गयी। कभी इन्ही रास्तों, बगीचो, मैस में उनके दादा घूमा करते होंगे। यहाँ की मैस मे उन्हे भोजन प्रस्तुत किया जाता होगा। कैरिल के मन में विचार उमड़ घुमड़ रहे थे। गढवाल रेजिमैन्टल सेन्टर के मैस देख कर वे हैरान थे कि ये तो अच्छा खासा
एतिहासिक संग्रहालय है । सच ही है,सैन्टर का मैस, एषिया महाद्वीप का सबसे खूबसरत व एतिहासिक महत्व की धरोहर है वहॉं के फर्ष को देखकर वे कुछ विस्मय में थे, कि ये किस तरह से बनाया है ? तब उन्हे बताया गया कि जब गढवाल राइफल्स अल्मोडा से लैन्सडाउन स्थानान्तरित किया जा रहा था तो मैस के चीनी मिटटी से बने बर्तन टूट गये उन टूटे हुये बर्तनों का उपयोग फर्ष को अनूठों ढंग से बनाने में किया गया था। कैरिल व रीटा लैंसडाउन की सम्मोहक, मनोहारी यादगार अनुभव को समेटे फरवरी माह में लॉकडाउन से कुछ दिन पूर्व अपने देष लौट गयी। लैन्सडाउन को देखकर रीटा ने कहा था ’’कि मुझे यहाँ घूमते हुये ऐसा लग रहा कि जैसे में स्काटलैण्ण्ड के किसी हिस्से में हूँ’’।
लैंन्सडाउन-जयहरिखाल से मेरा पुराना नाता था और मै भी यहाँ की मनोहारी दृष्य बर्फ से ढके हिमालय जो अपनी पूरी भव्यता से षाम के वक्त ढलते सूरज की आभा में सुनहरे हो जाते है व दिन में चॉदी बिखरते और जहॉ नीचे एक तरफ घाटी की गोद में बसे कई गाँव व दूसरी तरफ गंगा के मैदान मुझे सम्मोहित कर देते । हम अपनी फुफू के पास हर वर्श छुटिटयां मनाने आते उनके बगीचें में उन्मुक्त पक्षी से विचरते,कभी नाषपाती की डालों पर ट्रांजिस्टर लटकाकर गाने सुनते हुऐ ,लहसुन नमक के साथ मीठी नाषपतियों के चटकारे लेत,े मै उनसे कहती ’’मुझे जयहरीखाल, लैसंडाउन परीलोक सा षान्त सुन्दर लगता है, तो वह हंसते हुऐ कहती कि ’’ठीक है मै तेरी षादी यहीं किसी से करा दूंगी’’। कहते हैं कि जिहव्या मे कभी कभी सरस्वती विराजमान होती है और उस समय कही बात सत्य साकार हो जाती है तो वही हुआ मेरा विवाह लैंसडाउन में फौजी अफसर से हो गया। अब मैने महसूस किया कि इस छोटे से पहाड़ी कैन्टोमैन्ट का जादू मुझ पर ही नही मेरी तीनों विदेषी व देषी मित्रों पर भी बराबर चल गया था
- ईरा कुकरेती