“तुलसी” – (सावित्री काला की कविता)
तुलसी ने गायी राम की गाथा ।
राम जी ने हनुमान को साधा ।
हनुमान ने राम को मन से बांधा ।
यही तो है रामायण की कथा ।।
आज सब घर घर में रामायण गाते हैं ।
राम की कथा सबको सुनाते हैं ।
अपने पापों से भी तर जाते हैं ।
तभी राम नाम का प्रसाद पाते हैं ।।
राम को माना तुलसी ने आराध्य अपना
यही तो था तुलसी का एकमात्र सपना ।
सच हो गया है सारा विश्व देख रहा है देखो
भगवान राम का मंदिर बन रहा है कलयुग में आज
विनयवाली रत्नावली कवितावली ।
हैं तुलसी जी की अमूल्य रचनाएँ ।
जिनमे सिंचित हैं दास्य भाव की भावनाएं ।
आओ गा गा कर अपना जीवन सफल बनायें ।
तुलसी ने अष्ट मूल में था जनम लिया ।
माता पिता ने था उन्हें त्याग दिया ।
प्रिया रत्नावली का भी कैसा भाग्य रहा ।
तुलसी को पत्नी सुख नहीं मिल सका ।
प्रताड़ित हुए तुलसी अपनी पत्नी से ।
निकल पड़े घनघोर रात्रि में घर छोड़ कर ।
गिरे विक्षिप्त होकर एक गहरे कुएं में ।
बचाया स्वयं आकर भक्त को भगवान ने ।
सावित्री काला” सवि “